गोवर्धन पूजा:और उसके महत्व प्रकृति की समृद्धि और पर्यावरणीय सामंजस्य का उत्सव


मुन्ना अंसारी राज्य ब्यूरो
महराजगंज। गोवर्धन पूजा,जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है, दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला एक हिंदू त्योहार है। इस उत्सव में भगवान कृष्ण के उस महान कार्य का सम्मान किया जाता है,जिसमें उन्होंने अपने भक्तों को विनाशकारी तूफान से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाया था। 2 नवंबर 2024 को मनाई जाने वाली गोवर्धन पूजा प्रकृति के उपहारों के प्रति आभार, कृषि के प्रति श्रद्धा और सतत जीवन शैली का प्रतीक है। यह रिपोर्ट इस पर्व के ऐतिहासिक महत्व,अनुष्ठानों, कृषि प्रासंगिकता और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों की विस्तृत जानकारी प्रदान करती है,जिससे यह स्पष्ट होता है कि गोवर्धन पूजा कैसे भक्ति,पर्यावरणीय सम्मान और सामाजिक एकता को एकजुट करती है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा हिंदू पौराणिक कथाओं की एक महत्वपूर्ण घटना की स्मृति में मनाई जाती है,जिसमें भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र देव द्वारा भेजे गए मूसलधार वर्षा से बचाया। इस कार्य के माध्यम से कृष्ण ने नम्रता, सामूहिक शक्ति और प्रकृति के प्रति सम्मान का महत्व दर्शाया और अपने अनुयायियों को बाहरी शक्तियों के बजाय स्थानीय संसाधनों का महत्व समझाया।
मुख्य मूल्य जो इस पर्व में दर्शाए गए हैं:
1. पर्यावरणीय सामंजस्य: कृष्ण का यह कार्य प्रकृति की रक्षा और सम्मान का प्रतीक है,जिससे लोग अपने आसपास उपलब्ध संसाधनों की सराहना करना सीखते हैं।
2. आत्मनिर्भरता: गोवर्धन पर्वत की पूजा को बढ़ावा देकर,कृष्ण ने स्थानीय संसाधनों और स्थायी प्रथाओं के महत्व को उजागर किया।
3. सामूहिक जिम्मेदारी: यह कहानी समुदाय की दृढ़ता को दर्शाती है, जहाँ व्यक्ति एकजुट होकर एक-दूसरे की सुरक्षा और पर्यावरण का सम्मान करते हैं।
गोवर्धन पूजा के अनुष्ठान और परंपराएँ
गोवर्धन पूजा में कई अनुष्ठान किए जाते हैं जो इसके कृषि संबंधों और पर्यावरणीय दृष्टिकोण को उजागर करते हैं।
1. भगवान कृष्ण और प्रकृति को भेंट अर्पण: भक्त लोग अन्नकूट के रूप में विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करते हैं। ये भेंट प्रकृति की समृद्धि का प्रतीक हैं और कृषि समृद्धि के प्रति आभार व्यक्त करती हैं। सामुदायिक रूप से 56 या 108 प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं, जो पृथ्वी की उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक होते हैं।
2. पशुओं की सजावट और पूजा: ग्रामीण क्षेत्रों में गायों और अन्य पशुधन को फूलों से सजाया जाता है, उन्हें रंगा जाता है, और पूजा की जाती है। यह प्रथा कृषि और ग्रामीण आजीविका में पशुओं की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देती है। • डेटा जानकारी: भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पशुधन पर बहुत हद तक निर्भर है, जिसमें कृषि जीडीपी का लगभग 20% पशुधन क्षेत्र से आता है (कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, 2023)। गोवर्धन पूजा के अनुष्ठान कृषि स्थिरता में पशुधन की भूमिका को उजागर करते हैं। • गोवर्धन पर्वत के प्रतीक: लोग गोबर, मिट्टी और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके गोवर्धन पर्वत के छोटे-छोटे प्रतीक बनाते हैं। इन प्रतीकों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है, जो धरती और मिट्टी के महत्व को दर्शाते हैं।
कृषि संबंधी प्रासंगिकता: प्रकृति के उपहारों का सम्मान गोवर्धन पूजा कृषि चक्र के साथ गहराई से जुड़ी हुई है और भारत के कई हिस्सों में मानसून के अंत और शीतकालीन फसल की शुरुआत का प्रतीक है।
1. फसल का उत्सव: यह त्योहार ग्रामीण समुदायों को सफल फसल के लिए आभार व्यक्त करने और भविष्य की फसलों के लिए आशीर्वाद मांगने का एक मंच प्रदान करता है। यह पर्व का कृषि जड़ों और किसान समुदायों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाता है।
2. स्थायी प्रथाओं का प्रोत्साहन: गोवर्धन पर्वत और स्थानीय पशुधन की पूजा करके गोवर्धन पूजा स्थायी प्रथाओं को प्रोत्साहित करती है जो प्रकृति का सम्मान करती हैं और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखती हैं। • सांख्यिकीय जानकारी: भारत का कृषि क्षेत्र राष्ट्रीय कार्यबल का 40% से अधिक रोजगार प्रदान करता है (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, 2022),और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहार प्रकृति संरक्षण के महत्व को सांस्कृतिक और आर्थिक कारणों के लिए याद दिलाते हैं।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण: गोवर्धन पूजा पर्यावरणीय जिम्मेदारी का प्रतीक
गोवर्धन पूजा मानवता की प्रकृति पर निर्भरता और स्थायी प्रथाओं की आवश्यकता को गहराई से समझने को दर्शाती है।
1. प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान: यह पर्व गोबर, मिट्टी और प्राकृतिक रंगों जैसे पर्यावरण के अनुकूल सामग्री के उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को प्रोत्साहित करता है। यह परंपरा आधुनिक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप है और पर्यावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध पर जोर देती है।
2. सामुदायिक निर्माण का पर्व: गोवर्धन पूजा के सामुदायिक पहलू,जहाँ गाँव के लोग,परिवार के सदस्य और मित्र एक साथ मिलकर भेंट तैयार करते हैं और पूजा करते हैं,से सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं। सामूहिक पूजा सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है और पर्यावरण संरक्षण की साझा जिम्मेदारियों को सुदृढ़ करती है।