अहिल्याबाई के आदर्शों को अपनाएं: राज्यपाल
प्रांजल केसरी
महाकुंभनगर। विद्या भारती काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचार प्रमुख विक्रम बहादुर सिंह परिहार प्रधानाचार्य,ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर सिविल लाइन्स की विज्ञप्ति के अनुसार दिनांक 20.01.2025 को विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान के बैनर पर विद्या भारती पूर्वी उ0प्र0 क्षेत्र द्वारा आयोजित महाकुम्भ दर्शन शिविर में पुण्य श्लोका देवी अहिल्याबाई जी की जन्म त्रिशताब्दी के अवसर मातृशक्ति महाकुम्भ कार्यक्रम’’का अयोजन किया गया जिसमें 2500 से अधिक मातृशक्तियाँ उपस्थित रही।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल जी,अध्यक्ष के रुप में जूना अखाड़ा के महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द जी,विशिष्ट अतिथि के रुप में अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री यतीन्द्र जी,वात्सल्य हॉस्पिटल की निदेशक और प्रसिद्ध चिकित्सक डा0 कृतिका अग्रवाल जी एवं विशेष उपस्थिति के रुप में क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचन्द्र जी, क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री डॉ0 राममनोहर जी तथा क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ दिव्यकान्त शुक्ल जी उपस्थ्ति रहें।
कार्यक्रम की शुरुआत मॉ सरस्वती के सम्मुख दीपार्चन,पुष्पार्चन एवं वन्दना से हुई तत्पश्चात् काशी प्रान्त के प्रदेश निरीक्षक शशेषधर द्विवेदी जी आये हुये अतिथि महानुभावों का परिचय व सम्मान कराया इसके साथ ही उन्होने कार्यक्रम की प्रस्ताविकी भी रखी। कार्यक्रम की अगली कड़ी में विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित यतीन्द्र जी ने सभी को सम्बोधित करते हुये कहा कि विद्या भारती भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी अशासकीय संस्था है। इसका पूरा नाम विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान है। इसकी स्थापना सन् 1977 में हुई थी। विद्या भारती के तहत,हजारों शिक्षण संस्थान संचालित होते है। जैसे-शिशुवाटिका,सरस्वती शिशु मंदिर,सरस्वती विद्या मंदिर,प्राथमिक,उच्च प्राथमिक,माध्यमिक,वरिष्ठ माध्यमिक,संस्कार केंद्र,एकल विद्यालय,पूर्ण एवं अर्द्ध आवासीय विद्यालय और महाविद्यालय। आज लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में 72 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियाँ विद्या भारती से संलग्न हैं। इनके अंतर्गत 13000 प्राथमिक,माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक तथा 12000 संस्कार केन्द्र एवं एकल विद्यालयों जैसी शिक्षण संस्थाओं में 1,50,000 आचार्य एवं आचार्याओं के मार्गदर्शन में 36 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। विद्या भारती का एक महत्वपूर्ण अंग मातृशक्ति है,आज इस कार्यक्रम के माध्यम से मातृशक्ति का जो विराट रुप दिख रहा है वह निश्चित ही सभी के लिए एक गर्व का विषय है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे स्वामी अवधेशानन्द जी ने अपने अध्यक्षीय आशीर्वचन में कहा कि आज हम पुण्य श्लोका देवी अहिल्याबाई का जन्म त्रिशताब्दी वर्ष मना रहे है,उन्होने उनके जीवन पर वृहद प्रकाश डालते हुये कहा कि रानी अहिल्याबाई होल्कर 18वीं शताब्दी की एक वीर योद्धा, कुशल शासक और दूरदर्शी रानी थीं। उन्हें न केवल मालवा की रक्षा करने के लिए जाना जाता है,बल्कि उनके सामाजिक कार्यों के लिए भी याद किया जाता है। उस वीरांगना का जन्म वर्ष 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव में हुआ था। इतिहासकार ई मार्सडेन के अनुसार साधारण शिक्षित अहिल्याबाई का 10 वर्ष की अल्पायु में ही होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से विवाह हो गया था। वहीं महज 19 वर्ष की उम्र में ही वे विधवा हो गई थी। होल्कर वंश के संस्थापक मल्हार राव होल्कर के बाद अहिल्याबाई मालवा राज्य की रानी बनी थी। अहिल्या को लोगों के द्वारा सम्मान से राजमाता भी कहकर पुकारा जाता था। भारत देश अपनी समृद्ध संस्कृति,इतिहास और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ अनेक ऐसे योद्धा,शासक और वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनका नाम आज भी अमर है और हमेशा रहेगा। इनमें से अहिल्याबाई होल्कर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। अहिल्याबाई होल्कर 18वीं शताब्दी की एक प्रेरणादायक महिला थीं जिनका पूरा जीवन आज के युवाओं और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन के बारे में अधिक से अधिक लोग जान पाये इसी उद्देश्य से उनकी जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के अवसर पर देश भर में जगह-2 कार्यक्रमों का अयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम की अगली कड़ी में ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज सिविल लाइन्स के भैया बहनों के द्वारा अहिल्याबाई के जीवन पर आधारित एक नाट्य मंचन प्रस्तुत किया गया जिसे देखकर वहा बैठे सभी भाव विभोर हो गये।
मुख्य अतिथि महामहिम राज्यापाल जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह महाकुम्भ का अवसर 144 वर्षों के बाद आया है हम सब बहुत भाग्यशाली है जो हम इस अवसर के साक्षी बन पा रहे है। अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुये उन्होने कहा कि अहिल्याबाई बहुत ही सरल स्वाभाव की महिला थी लेकिन पति की मृत्यु के बाद उन्होने न केवल शासन चलाना सीखा बल्कि एक कुशल शासक बनकर शासन चलाया इसका एक उदाहरण है कि किसान की किसी दैवीय आपदा में फसल बिगड़ जाने पर उसका मुवाअजा देने की शुरुआत अहिल्याबाई जी ने ही किया था। उन्होने सभी माताओं एवं बहनों को सम्बोधित करते हुये कहा कि किसी भी किसी भी बालक के लिए उसका सबसे पहला विद्यालय उसका घर तथा सबसे पहली गुरु उसकी माँ होती है,उन्होने कहा कि मातृशक्ति का यह प्रमुख कर्तव्य है कि अपने पाल्य को सही संस्कार देकर एक अच्छा नागरिक बना सके जिससे वह न केवल अपने परिवार बल्कि सम्पूर्ण समाज एवं राष्ट्र की सेवा कर सके। उन्होने कहा कि विद्या भारती के विद्यालय जिस प्रकार से अपने भैया बहन को संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान करके एक सच्चा नागरिक एवं राष्ट्रभक्त बनाने का कार्य कर रहे है निश्चित रुप से वह कही न इन मातृशक्तियों के उद्देश्य प्राप्ति में इनके सहयोगी की भूमिका निभा रहे है।
कार्यक्रम के अन्त में राष्ट्रगान के पूरा पण्डाल राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत हो गया। कार्यक्रम का संचालन ज्वाला देवी सिविल लाइन्स की छात्रा बहन अंशिका के द्वारा किया गया थाा। कार्यक्रम में विद्या भारती के अन्य पदाधिकारीगण,महानगर के समस्त प्रधानाचार्य,आचार्य बन्धु भगिनी,अभिभावकगण तथा अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहें।