कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं,बल्कि एक गहरी आत्मिक यात्रा है- देवकीनंदन ठाकुर महाराज

उप संपादक शत्रुघ्न प्रजापति
प्रयागराज। पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा के प्रथम दिन बताया कि देवताओं ने,ऋषियों ने,महात्माओं ने कुम्भ इसलिए किया ताकि मनुष्य अपने आप को ऊपर उठा सके। कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं,बल्कि एक गहरी आत्मिक यात्रा है,जो मनुष्य को अपने भीतर के सर्वोत्तम स्वरूप की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है।
जीवन को सुंदर और स्वस्थ बनाने के लिए भोजन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। भारतीय संस्कृति में भोजन को तीन प्रकारों में बांटा गया है: तामसिक भोजन,राजसिक भोजन और सात्विक भोजन। तामसिक भोजन वह है जो शरीर और मन को अशांत,आलसी और अजीवित बनाता है। राजसिक भोजन वह होता है जो शरीर को उत्तेजित करता है और मन में बेचैनी और कामुकता का अहसास उत्पन्न करता है। सात्विक भोजन वह होता है जो शरीर,मन और आत्मा को शांति,संतुलन और ऊर्जा प्रदान करता है।

भगवान की कृपा और आशीर्वाद हमेशा उस व्यक्ति के साथ रहते हैं,जो सच्चे दिल से धर्म के मार्ग पर चलता है। धर्मात्मा मनुष्य को भगवान का साथ जीवनभर मिलता है। वह सच्चे मार्ग पर चलने वाले भक्त की रक्षा करते हैं और उसे हर संकट से उबारते हैं। इसलिए,हमेशा भगवान पर विश्वास रखें और उनके मार्ग पर चलें। जीवन में किसी भी मुश्किल का सामना करते समय यह याद रखें कि भगवान हमेशा आपके साथ हैं,और उनका साथ कभी भी छूटने वाला नहीं है।
गुरु का स्थान हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र होता है। वे हमारे मार्गदर्शक,शिक्षक और जीवन के सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरक होते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बड़ा माना गया है, क्योंकि गुरु के बिना जीवन में ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। गुरु वह होते हैं जो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करते हैं,हमारी गलतियों को सुधारते हैं और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझाते हैं। गुरु के बिना जीवन अंधकारमय होता है और गुरु के आशीर्वाद से ही हम जीवन के सर्वोत्तम मार्ग पर चल सकते हैं।