राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बालक के समग्र विकास और सर्वांगीण विकास पर व्यापक ध्यान दिया गया – हेमचंद्र

प्रांजल केसरी न्यूज एजेंसी
अमेठी: जन शिक्षा समिति काशी प्रदेश द्वारा आयोजित 10 दिवसीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग 2025 के छठवें दिवस पर वंदना सत्र में विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचंद्र द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर पुष्पार्चन एवं वंदन के उपरांत कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ ।
सरस्वती शिक्षा मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ग्रामभारती परतोष अमेठी के विशाल सभागार में मुख्य अतिथि क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचंद्र,संभाग निरीक्षक द्वय उपस्थित रहे। सम्भाग निरीक्षक वीरेंद्र सिंह ने अतिथि महानुभाव का परिचय कराते हुए श्रीफल एवं अंग वस्त्र से आपका स्वागत किया गया। प्रांतीय प्रचार प्रमुख संतोष मिश्र के अनुसार काशी प्रांत से आए हुए 57 प्रशिक्षार्थियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया।

संगठन मंत्री ने कहा कि बालक का सर्वांगीण एवं समग्र विकास कैसे किया जाए? विद्या भारती के लक्ष्य को दुहराते हुए बालक के सर्वांगीण विकास की संकल्पना दुहराई गई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बालक के समग्र विकास और सर्वांगीण विकास पर व्यापक ध्यान दिया गया।
विद्या ददाति विनयम् अर्थात विद्या विनम्रता देती है। हम बालक के शारीरिक,प्राणिक, मानसिक,बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए कृत संकल्पित हैं। बच्चों के अंदर सेवा भाव होना चाहिए। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि दरिद्र नारायण की सेवा करें। आपने कहा कि राष्ट्र सर्वोपरि है,हमें अपनी संस्कृति को नहीं भुलाना चाहिए। राष्ट्र रहेगा तभी हम सब लोग रहेंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह विचार आया है कि पंच कोशात्मक विकास क्रिया आधारित हो। हम अपने जीवन के बारे में क्या सोचते हैं,इसे जीवन दर्शन कहते हैं। पूरी सृष्टि अखंड है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि”ईश्वर अंश जीव अविनाशी”,गीता में श्री कृष्ण ने कहा है “नैनं छिंदन्ति शस्त्राणि”
जो परमपिता परमेश्वर हमारे अंदर है,वहीं नन्ही चींटी में भी है,जिसे हम आटा खिलाते हैं, सांप को दूध पिलाते हैं ।जीव को 84 लाख योनियों में भटकना पड़ता है,हम अच्छा कार्य करेंगे तो”बड़े भाग्य मानुष तन पावा”। मोक्ष की प्राप्ति के लिए धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष का रास्ता बताया गया है । हमें अपने आय का दसवां भाग समाज कार्य, शिक्षा आदि में लगाना चाहिए। यही मोक्ष प्राप्ति का रास्ता है। व्यक्ति के सीखने में पांच ज्ञानेंद्रियां तथा पांच कर्मेंद्रियां कार्य करती हैं। शिक्षा का पहला उद्देश्य पंच कोशात्मक विकास करना है।
१-अन्नमय कोश,२-प्राणमय कोश,३-मनोमय कोश,४-विज्ञानमय कोश,५-आनन्दमय कोश
जीवन का प्रथम सुख निरोगी काया है। भारत के लोगों का अपने जीवन के बारे में दृष्टि ही जीवन दर्शन है। जीव भोजन,निद्रा,भय एवं वंश की वृद्धि करता है। जीवन एक है,अखंड है, अविनाशी है।
नैनं छिंदंति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनम क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:।।
चार पुरुषार्थ धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष बताए गए हैं
क्षेत्रीय संगठन मंत्री अपने द्वितीय सत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप कार्य योजना पर अपनी बात कहते हुए व्यक्तिगत विकास से परमेष्ठिगत विकास की ओर सभी प्रशिक्षार्थियों को ले गए। भारत विश्व गुरु कैसे बने? इसमें हमारा क्या योगदान होगा? इस पर चर्चा हुई। अंत में आनंदमयी शिक्षा एवं पंच कोशात्मक विकास एवं उसके कारक तत्वों को बताते हुए अपनी बातें समाप्त किये।