अमेठी


जो सनातन है वही पुरातन है- डॉ सौरभ मालवीय

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प्रांजल केसरी न्यूज एजेंसी
भेंटुआ/अमेठी : विद्या भारती जन शिक्षा समिति काशी प्रदेश द्वारा आयोजित 10 दिवसीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग के सप्तम दिवस के अवसर पर द्वितीय सत्र में डॉ सौरभ मालवीय क्षेत्रीय मंत्री पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष,अशोक सिंह वरिष्ठ पत्रकार,सम्पादक एवं विद्या भारती काशी प्रदेश के प्रांतीय सदस्य का परिचय प्रदेश निरीक्षक राजबहादुर दीक्षित ने कराया।
डॉक्टर सौरभ मालवीय का स्वागत अंग वस्त्र एवं श्रीफल द्वारा अशोक सिंह ने किया, कार्यक्रम में अमेठी मीडिया के अनेकों पत्रकार एवं सम्पादक उपस्थित रहे। पत्रकारिता जगत से संबंधित सभी पत्रकार बंधुओ को प्रांत प्रचार प्रमुख संतोष मिश्र द्वारा अंग वस्त्र से सम्मानित किया गया।
      मालवीय जी ने कहा कि तीन शब्दों को समेटे हुए भारतीय ज्ञान परंपरा है। जब हम भारत शब्द बोलते हैं,सुनते हैं ,तो हमारा मन पवित्र हो जाता है। यह आध्यात्मिक क्षेत्र को जागृत करता है। इसे भू सांस्कृतिक चेतना कहते हैं। भारत को हम ज्ञान की धरती कहते हैं। जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है,वह भारत है। व्यष्टि से समष्टि की यात्रा भारत है। अन्य देशों में ठंडी पड़ रही है तो ठंडी ही पड़ेगी,गर्मी है तो बहुत गर्मी रहेगी,किंतु भारत में ऐसा नहीं है यहां ऋतुएं हैं । भारत का धर्म सृष्टि से है,प्रकृति आधारित है, नदी जीवन दायिनी है, वृक्ष धूप सहकार छाया,फल एवं ऑक्सीजन देते हैं। गाय में देवता का वास है। प्रकृति लोक मंगल का प्रतीक है,जनमानस में वसुधैव कुटुंबकम का भाव है। जहां सुंदरता है, श्रेष्ठता है,वहीं सत्यता और शिव हैं,अर्थात भारत सत्यम् शिवम् सुंदरम् है।
          ज्ञान मनुष्य को पूर्ण बनाता है। वर्तमान पीढ़ी जब अपने अतीत पर गर्व करेगा,तब भारत कभी लूला लंगड़ा नहीं होगा। महाभारत के युद्ध में अर्जुन द्वंद में उलझ जाते हैं,तब श्री कृष्णा मुस्कुराते हुए अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराते हैं, तब अर्जुन को ज्ञान प्राप्त होता है। लंका विजय के बाद लक्ष्मण ने प्रभु श्री राम से कहा, कि अब यह लंका अपनी हो गई, तो प्रभु ने कहा “अपि स्वर्णमयी लंका न लक्ष्मण रोचते”
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”
       राजा शिवि एक पक्षी को बचाने हेतु उसके शरीर के भार के बराबर अपने शरीर का मांस देने की बात कही । यही जीवन दर्शन है। त्याग रुपी जीवन दर्शन राजा हरिश्चंद्र से सीखते हैं। भारत की ज्ञान परंपरा हमारे वेदों,उपनिषदों से प्राप्त हुई।
       भारत के ज्ञान को आने वाली पीढियां के साथ लेकर चलने की एक परंपरा है। भारत उदार है, परोपकारी है,और सब को एक साथ लेकर चलने वाला है। प्रकृति धर्म आधारित है,न्याय आधारित है,विविधताओं में एकता है।तिलक लगाना,दीप प्रज्वलित करना, पुष्पार्चन करना,लोक मंगल कार्य करना,हाथ में रक्षा सूत्र बांधना,रुद्राक्ष धारण करना, तुलसी एवं सूर्य को जल देना आदि हमारी परंपराएं हैं जो सनातन से चली आ रही हैं। जो सनातन है, वही पुरातन है। उसे लेकर परंपरागत चलना है।
      शिक्षण कौशल के बारे में बताते हुए आपने कहा कि प्रभावी संवाद,प्रेरणादायक शिक्षण,आध्यात्मिक अनुशासन,नैतिक मूल्यों का संप्रेषण,अनुकूलन शीलता,शिक्षार्थी केंद्रित दृष्टिकोण,सामाजिक कार्य,सेवा भाव,शिक्षक के प्रमुख कौशल हैं । यह नौकरी नहीं,बल्कि एक जीवन दर्शन है। प्रशिक्षण की जानकारी करते हुए विद्या भारती के बारे में बताया कि विद्या भारती का मालिक समाज है।

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