यजीद मिट गया मगर इमाम हुसैन आज भी हैं- अल्लामा जाबिर हुसैन सिद्दीकी

मुन्ना अंसारी स्टेट ब्यूरो
महराजगंज। सैय्यद असरार हसन मरहूम (गुड़िया बाबू) के आवास पर ज़िक्र इमाम ए हुसैन की सभा का आयोजन किया गया। जिसमें पास-पड़ोस के अधिक लोगों ने भाग लिया। सभा को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर अल्लामा जाबिर हुसैन सिद्दीक़ी ने फरमाया के अरबी कैलेंडर के भी 12 महीने होते हैं। जिसमें पहला महीना मोहर्रम का होता है। इसी महीने में जगतगुरु हज़रत मोहम्मद के खानदान के सभी लोगों को मैदान ए कर्बला में यजीद इब्ने मअ़विया ने बग़ैर खाना और पानी के सबको क़त्ल करवा दिया था। तब से आज तक हज़रत इमाम हुसैन के चाहने वाले उनको याद करते हैं और उनकी मजलिस करके उनकी रूह को ख़ैराजे अकी़दत पेश करते हैं। उनकी बहादुरी यह थी कि उनके साथ कुल 72 लोग थे। जिनमें बीमार भी थे,औरतें भी थी,जंग का सामान भी नहीं था और दूसरी तरफ 22,000 का बहुत बड़ा लश्कर था। मगर इन 72 लोगों ने अपनी बहादुरी से 22,000 लोगों के परख़चे उड़ा दिए। इसीलिए इमाम हुसैन का ज़िक्र आज तक बाक़ी है। यज़ीद और उसके सारे सहयोगी मिट गए। उनका कोई नाम लेने वाला भी नहीं रह गया। मगर इमाम हुसैन ने सब्र किया। सब शहीद हो गए लेकिन आज भी हर घर में,हर मुल्क में,हर धर्म के लोग उनको अपना रहबर मानते हैं। ज़ालिम मिट जाता है और मज़लूम हमेशा जिंदा रहता है।