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क्यों अमेरिका के लिए जरूरी है भारत से ट्रेड डील? दांव पर लगी ट्रंप की साख,नजर गड़ाए कई देश

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संपादक नागेश्वर चौधरी
नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। इस संभावित डील से पहले ट्रंप की साख भी दांव पर लगी है। चीन सहित कई देश इस पर करीबी नजर रख रहे हैं। आइए समझते हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य में भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौता (ट्रेड डील) न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि विश्व व्यापार की दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ एक व्यापार समझौते की “सफलता” का दावा किया और भारत के साथ “बहुत बड़ी डील” की संभावना जताई। यह बयान न केवल व्यापारिक रणनीति का हिस्सा है, बल्कि वैश्विक मंच पर अमेरिका की साख और प्रभाव को बनाए रखने की कोशिश भी दर्शाता है। भारत और अमेरिका के बीच चल रही यह वार्ता न केवल आर्थिक, बल्कि कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम है।
भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। 9 जुलाई को अमेरिका के जवाबी टैरिफ की अस्थायी छूट समाप्त हो रही है, ऐसे में भारतीय व्यापार वार्ताकारों ने वॉशिंगटन डीसी में कुछ और समय रुकने का फैसला किया है ताकि कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर मतभेद सुलझाए जा सकें और एक अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा सके। आइए विस्तार से समझते हैं कि क्यों अमेरिका के लिए भी जरूरी है भारत से डील और आखिर क्यों दांव पर लगी है ट्रंप की साख।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंध और ट्रंप का टैरिफ
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध लंबे समय से मजबूत रहे हैं। 2024 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) करीब 45 अरब डॉलर था, जो दर्शाता है कि भारत इस रिश्ते में आर्थिक रूप से लाभ की स्थिति में है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य वर्तमान में करीब 190 अरब डॉलर है, और इसका लक्ष्य 2030 तक 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य दोनों देशों के लिए अवसरों के साथ-साथ चुनौतियां भी पेश करता है।
हालांकि,अमेरिका ने भारत के निर्यात पर 26% का “जवाबी टैरिफ” लागू किया था, जिसे 90 दिनों के लिए (9 जुलाई 2025 तक) स्थगित कर दिया गया है। इस बीच, भारत मौजूदा नीतियों के तहत 10% टैरिफ के अधीन है। ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि भारत इस टैरिफ से बचने के लिए पहला द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने वाला देश बन सकता है। यह डील दोनों देशों के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है।

ट्रंप की साख और वैश्विक दबाव
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्विक व्यापार को अपनी प्राथमिकता बनाया है। चीन के साथ हालिया समझौते के बाद,ट्रंप ने भारत के साथ एक “बहुत बड़ी डील” की बात कही, जिसे उन्होंने 16 बार दोहराया है। यह बयान न केवल भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि ट्रंप अपनी व्यापार नीतियों के जरिए वैश्विक मंच पर अमेरिका की साख को मजबूत करना चाहते हैं। अमेरिका के लिए यह डील इसलिए जरूरी है क्योंकि वह ब्रिटेन, चीन और भारत जैसे बड़े बाजारों के साथ सफल समझौते करके अन्य देशों पर दबाव बनाना चाहता है। ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि अमेरिका हर देश के साथ डील नहीं करेगा; कुछ देशों को केवल “धन्यवाद पत्र” मिलेगा, जिसमें 25-45% टैरिफ का उल्लेख होगा। भारत के साथ यह समझौता ट्रंप प्रशासन की व्यापारिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो ग्लोबल सप्लाई चैन में अमेरिका की स्थिति को मजबूत करने और चीन के प्रभाव को कम करने की दिशा में काम कर रहा है।

अमेरिका का दबाव,लेकिन भारत भी अडिग
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि अमेरिका भारत से ऑटोमोबाइल, व्हिस्की और कृषि उत्पादों- जैसे सेब,मक्का (कॉर्न),और सोया में बाजार खोलने की मांग कर रहा है। वहीं भारत का जोर स्टील,एल्युमिनियम और ऑटो पार्ट्स पर लगे अतिरिक्त शुल्क हटाने और भविष्य में नए टैरिफ न लगाने की स्पष्ट गारंटी पर है।
सबसे बड़ा विवाद कृषि और डेयरी क्षेत्र को लेकर है। अमेरिका चाहता है कि भारत जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों और ऐसे डेयरी उत्पादों को बाजार में प्रवेश दे जो उन जानवरों से प्राप्त होते हैं जिन्हें आंतरिक रक्त मील खिलाया गया हो। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया है कि “कृषि और डेयरी भारत की ‘रेड लाइन’ हैं” और इन क्षेत्रों में अत्यधिक सतर्कता बरती जा रही है। उन्होंने The Financial Express को दिए इंटरव्यू में कहा, “हां,हम एक बड़ा,अच्छा, सुंदर समझौता करना चाहते हैं-क्यों नहीं? लेकिन हमारी प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं।”

भारत की रणनीतिक मांगें और संवेदनशील मुद्दे
भारत इस व्यापार समझौते में अपनी रणनीतिक मांगों को लेकर सतर्क और सख्त रुख अपनाए हुए है। भारत विशेष रूप से दूरसंचार उपकरण,बायो टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI),दवा निर्माण,क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में तकनीकी पहुंच में ढील की मांग कर रहा है। भारत चाहता है कि अमेरिका उसे ऑस्ट्रेलिया,ब्रिटेन और जापान जैसे अन्य सहयोगी देशों के समान दर्जा दे,जिससे भारतीय इनोवेशन और तकनीकी बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिले।
हालांकि,भारत के लिए कृषि और डेयरी क्षेत्र संवेदनशील मुद्दे हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया है कि इन क्षेत्रों में भारत की कुछ निश्चित सीमाएं हैं, जिन पर विचार करना जरूरी है। भारत अपने किसानों और डिजिटल क्षेत्र के हितों की रक्षा पर जोर दे रहा है। उदाहरण के लिए,अमेरिका भारत से वाहनों पर शुल्क कम करने की मांग कर रहा है,जबकि भारत इसके बदले में कृषि उत्पादों जैसे एथनॉल,बादाम,अखरोट,सेब और जैतून के तेल पर शुल्क में कमी की बात कर सकता है।

चुनौतियांः टैरिफ और रुकावटें
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता में कई चुनौतियां हैं। अमेरिका भारत पर ज्यादा टैरिफ लगाने का आरोप लगाता रहा है,जबकि भारत का कहना है कि वह अपने निर्यात उत्पादों,जैसे टेक्सटाइल,चमड़ा,फार्मा और ऑटो क्षेत्र के उत्पादों पर टैरिफ में छूट चाहता है। इसके अलावा, भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि डील के बाद भविष्य में टैरिफ नहीं बढ़ाया जाए। अमेरिका की मांगें भी कम जटिल नहीं हैं। वह कृषि,डेयरी के अलावा, इलेक्ट्रिक वाहन,शराब,पेट्रोरसायन और जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों पर शुल्क रियायत चाहता है। भारत के लिए इन क्षेत्रों में बाजार खोलना मुश्किल है,क्योंकि यह स्थानीय किसानों और उद्योगों के हितों को प्रभावित कर सकता है।

चीन के साथ अमेरिका की प्रगति से भारत पर दबाव
इस बीच अमेरिका ने हाल ही में चीन के साथ व्यापार वार्ता को सकारात्मक रूप में समाप्त किया है। जबकि भारत के साथ बातचीत इससे पहले शुरू हुई थी, लेकिन अभी तक ठोस परिणाम नहीं निकले हैं। चीन के साथ अमेरिका की समझदारी से भारत पर दबाव बढ़ा है कि वह जल्द से जल्द किसी समझौते पर पहुंचे। फिलहाल भारतीय निर्यातकों को फायदा यह मिल रहा था कि चीन पर ज्यादा शुल्क लगे होने के कारण भारतीय वस्तुएं प्रतिस्पर्धी बन रही थीं। अगर अमेरिका भारत पर भी चीन जैसी शर्तें लागू करता है तो यह बढ़त खत्म हो सकती है।

वर्तमान स्थितिः पिछले दौर में बातचीत
भारत और अमेरिका के बीच अंतरिम व्यापार समझौते की वार्ता निर्णायक दौर में है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई वाणिज्य विभाग के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल कर रहे हैं। उन्होंने अपनी अमेरिकी यात्रा को आगे बढ़ा दिया है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने संकेत दिया है कि दोनों देश एक ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं, जो दोनों के लिए फायदेमंद है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने भी कहा कि ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अच्छे संबंध इस डील को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होंगे।

भारत और अमेरिका के लिए क्यों जरूरी?
भारत के लिए यह डील तकनीकी और आर्थिक विकास के नए द्वार खोल सकती है। दूसरी ओर,अमेरिका के लिए यह समझौता न केवल व्यापार घाटे को कम करने में मदद करेगा,बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में भी रणनीतिक लाभ देगा। क्वाड (भारत,अमेरिका,जापान और ऑस्ट्रेलिया) जैसे गठबंधनों में भारत की भूमिका को देखते हुए,यह डील दोनों देशों के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

स्वदेशी जागरण मंच’ ने जताई आपत्ति
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि”भारत की कृषि और लघु उद्योग अमेरिका के हितों की बलि नहीं चढ़ सकते। अमेरिका जो चाहता है, वह भारत दे ही नहीं सकता।” उन्होंने अमेरिका की मांगों को ‘हठधर्मिता’ बताते हुए पूछा,”क्या हम जीएम फसलों को आने दें? क्या हम नॉन-वेज दूध और डेयरी स्वीकार करें? यह देश की संप्रभुता और पारंपरिक उद्योगों के साथ अन्याय होगा।”

कपड़ा और फुटवियर उद्योग को राहत की उम्मीद
हाल ही में भारत में हुई एक दौर की बातचीत में ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई, जहां भारत चाहता है कि उसे भी अमेरिका में उन देशों जैसी टैरिफ राहत मिले जिनके साथ अमेरिका का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है। कपड़ा और फुटवियर जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए अमेरिका में कम शुल्क भारत की प्रमुख मांगों में शामिल हैं।

तेल और रक्षा खरीद से संतुलन बनाने की रणनीति
भारतीय अधिकारियों ने संकेत दिया है कि तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद अमेरिका से बढ़ाकर व्यापार असंतुलन को कम किया जा सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के पहले चार महीनों में अमेरिका से भारत का तेल आयात 270% तक बढ़ गया है- यह नई दिल्ली की रणनीति का हिस्सा है जिसमें व्यापार वार्ता के साथ-साथ तेल स्रोतों में विविधता लाने पर भी जोर है।

इस डील पर कौन-कौन से देश नजर गड़ाए हैं?
भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते पर कई देश नजर गड़ाए हुए हैं, क्योंकि यह वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है। सबसे पहले,चीन इस डील पर करीबी नजर रख रहा है,क्योंकि यह समझौता न केवल भारत-अमेरिका के आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगा,बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। इसके अलावा,ब्रिटेन और जापान जैसे क्वाड देश भी इस डील के परिणामों पर ध्यान दे रहे हैं,क्योंकि यह उनके अपने व्यापारिक और रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकता है। विशेष रूप से ब्रिटेन,जो हाल ही में अमेरिका के साथ एक अंतरिम व्यापार समझौता कर चुका है,भारत की शर्तों और रियायतों को देखकर अपनी रणनीति को समायोजित कर सकता है।
इसके अलावा,यूरोपीय संघ और आसियान देश जैसे सिंगापुर,वियतनाम और इंडोनेशिया भी इस डील के परिणामों पर नजर रख रहे हैं। यूरोपीय संघ भारत के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत कर रहा है,और अमेरिका के साथ भारत की डील उनके लिए एक मापदंड स्थापित कर सकती है। वहीं,आसियान देशों को डर है कि भारत के साथ अमेरिका का समझौता उनके निर्यात बाजारों को प्रभावित कर सकता है, खासकर टेक्सटाइल,इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि जैसे क्षेत्रों में। यह डील ग्लोबल सप्लाई चैन और व्यापार नीतियों को फिर से परिभाषित करने की क्षमता रखती है,जिसके कारण कई देश इसके परिणामों और प्रभावों का विश्लेषण कर रहे हैं।

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