3 करोड़ मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं’बिहार में एसआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

उप संपादक पंकज मणि त्रिपाठी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर बिहार में मतदाता सूची में संशोधन के लिए विशेष अभियान (एसआईआर) चलाने के निर्वाचन आयोग के निर्देश को चुनौती दी गई है. यह याचिका एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने दायर की है.बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.
24 जून को भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची में सुधार के लिए एसआईआर अभियान चलाने का निर्देश जारी किया था, जिसका उद्देश्य अपात्र नामों को मतदाता सूची से हटाना और पात्र नागरिकों के नाम को वोटर लिस्ट में शामिल करना है.
एडीआर ने अपनी दलील में कहा है कि अनुमान के अनुसार 3 करोड़ से ज्यादा मतदाता और विशेष रूप से वंचित समुदायों (एससी,एसटी और प्रवासी मजदूर) से आने वाले मतदाता एसआईआर आदेश में शामिल की गई सख्त आवश्यकताओं के कारण मतदान से बाहर हो सकते हैं.याचिका में कहा गया है, “बिहार से मौजूदा रिपोर्ट, जहां एसआईआर पहले से ही चल रही है, दिखाती है कि गांवों और वंचित समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए मांगे जा रहे दस्तावेज नहीं हैं.”
एडीआर की याचिका में बिहार में वोटर लिस्ट की एसआईआर के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी 24 जून के आदेश और संचार को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है. याचिका में तर्क दिया गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14,19,21,325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम,1950 और मतदाता पंजीकरण नियम,1960 के नियम 21A के प्रावधानों का उल्लंघन है.
एडीआर ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से यह याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है,”अगर 24 जून का एसआईआर आदेश रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से वंचित किया जा सकता है,जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है,जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं.”
एसआईआर की समयसीमा कम
याचिका में कहा गया है कि दस्तावेज जमा करने आवश्यकता,उचित प्रक्रिया का अभाव और बिहार में एसआईआर की कम समयसीमा के कारण इस प्रक्रिया से लाखों सही मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हट जाएंगे,जिससे वे मताधिकार से वंचित हो जाएंगे.
याचिका में कहा गया है,”चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी किए गए आदेश ने मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर नागरिकों पर डाल दी है. इसमें आधार या राशन कार्ड जैसे पहचान के दस्तावेजों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों के मतदान से वंचित होने की संभावना और बढ़ गई है.”
एडीआर ने ये भी कहा है कि एसआईआर प्रक्रिया के तहत की यह घोषणा अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है,क्योंकि इसमें मतदाता को अपनी नागरिकता तथा अपने माता या पिता की नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज देने की आवश्यकता होती है,अन्यथा उसका नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में नहीं जोड़ा जाएगा और उसे हटाया भी जा सकता है.
चुनाव से ठीक पहले एसआईआर अव्यवहारिक
याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने नवंबर 2025 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में एसआईआर करने के लिए अनुचित और अव्यवहारिक समयसीमा जारी की है. याचिका में कहा गया,”लाखों नागरिक हैं (जिनके नाम 2003 के ईआर में नहीं थे) जिनके पास एसआईआर आदेश के तहत जरूरी दस्तावेज नहीं हैं, ऐसे कई लोग हैं जो दस्तावेज हासिल करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन निर्देश में दी गई छोटी समयसीमा उन्हें तय समय के भीतर इसे उपलब्ध करने से रोक सकती है.”
एडीआर ने कहा है कि 2003 से अब तक बिहार में पांच लोकसभा चुनाव और पांच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और बिहार की मतदाता सूची में नामों को लगातार जोड़ा और हटाया जा रहा है.
याचिका में कहा गया है,”जिस तरह से चुनाव आयोग ने एसआईआर करने का निर्देश दिया है वह अवैध,मनमाना है और इसने सभी हितधारकों,खासकर मतदाताओं पर सवाल खड़े किए हैं.इसके अलावा,29 अक्टूबर, 2024 और 6 जनवरी, 2025 के बीच विशेष सारांश संशोधन (एसएसआर) पहले ही किया जा चुका है,जिसमें मृत्यु या अन्य कारणों से प्रवास और अयोग्य मतदाताओं जैसे मुद्दों का समाधान किया गया है. इस प्रकार,इतने कम समय में चुनावी राज्य में इतनी कठोर प्रक्रिया का कोई कारण नहीं है, जिससे लाखों मतदाताओं के वोट के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है.