आचार्य के प्रति समाज एवं विद्यार्थी में सम्मान दिखे – यतीन्द्र कुमार शर्मा

विद्यालय सामाजिक चेतना का केंद्र बने-श्री शर्मा
प्रांजल केसरी न्यूज एजेंसी
अमेठी: विद्या भारती जन शिक्षा समिति काशी प्रदेश द्वारा आयोजित 10 दिवसीय नव चयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग का शुभारंभ 13 जून सायंकाल से 23 जून तक सम्पन्न होगा। वर्ग के उद्घाटन सत्र में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री यतीन्द्र कुमार शर्मा,शोध समन्वयक अशोक सरस्वती प्रकाशन लखनऊ के प्रबंधक उमाशंकर मिश्र व काशी प्रांत के सह संगठन मंत्री डॉ राम मनोहर द्वारा मां सरस्वती को दीप प्रज्वलन एवं पुष्पार्चन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। प्रदेश निरीक्षक राज बहादुर दीक्षित ने आप सब का परिचय कराया और अंग वस्त्र तथा श्रीफल के द्वारा आपका सम्मान किया गया।

राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भारतीय शब्द है,आचार्य के प्रति समाज एवं विद्यार्थी में सम्मान होना चाहिए। आचार्य तप है,एक साधन है,हमारी साधना राष्ट्रीय हित में शिक्षा के माध्यम से परिवर्तन लाना चाहती है। हमारी जैसी जीवन शैली होगी वैसे ही विद्यालय का निर्माण होगा। तुलसीदास जी ने कहा है – जाकी रही भावना जैसी,तिन्ह मूरत देखी तह वैसी।
हमारी दृष्टि ब्रह्ममय होनी चाहिए। आचार्य का जीवन आध्यात्म से युक्त हो,ब्रह्म मुहूर्त में उठाना,मां सरस्वती की कल्पना,सकारात्मक हो,जीवन श्रेष्ठ हो,छल कपट ना हो,निष्कलंक हो,ऐसा गुण आचार्य में होना चाहिए। बालक परमात्मा की सबसे सुंदर प्रतिमूर्ति है,उसे बनाने का कार्य आचार्य करता है। उसमें किसी प्रकार का दुर्गुंण नहीं होना चाहिए। एक आचार्य में,सर्वगुण संपन्न बालक की प्रतिमूर्ति उसके दृष्टि पटल पर होनी चाहिए।

एक सुंदर समाज का निर्माण करना आचार्य का संकल्प होना चाहिए। आचार्य इतना आवश्यक है जितना एक मरीज और भगवान के बीच डॉक्टर का होता है। आचार्य में सर्वे भवंतु सुखिन: की दृष्टि होनी चाहिए। वह समाज का प्रेरणा बिंदु होता है। उसका जीवन सादगी पूर्ण होना चाहिए। उसमें सादा जीवन उच्च विचार की भावना हो। आधुनिकता बुरा नहीं है,किंतु पश्चात्यता बुरा है। ज्ञान कभी बूढ़ा नहीं होता। मोबाइल का उपयोग ज्ञान की दृष्टि में करें। संगत करना हो तो सत्संग का करें,साहित्य पढ़े,पुस्तकें आचार्य की मित्र होती हैं। इसीलिए कहा गया है श्रद्धावान लभते ज्ञानम्। एक योग्य बालक राष्ट्र का निर्माण करता है,किंतु एक आचरण हीन बालक अपना परिवार,समाज एवं राष्ट्र का अहित करता है। आचार्य को आत्म चिंतन करते हुए शयन करना चाहिए। उसे सेवाभावी होना चाहिए,इसका अभ्यास करना चाहिए।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात है सिर पर परत निशान ।।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में संभाग निरीक्षक वीरेंद्र सिंह,कमलेश, प्रचार प्रमुख संतोष मिश्र,संतोष पांडेय,विवेक शर्मा तथा प्रदेशभर से आए हुए नव चयनित 57आचार्य बंधु/भगिनी उपस्थित रहे।